श्रीझाडखण्डनाथ तीर्थ स्थली की आंतरिक दीवारों पर अंकित अमृत श्लोकों का वर्णनः-

राजगोपुरम् यानि श्री झाडखण्डनाथ तीर्थ स्थली परिसर के आंतरिक मुख्य प्रवेश द्वार से पूर्व दीवार के उत्तर दिशा  में चलने पर पूर्व दीवार पर अमृत श्लोक की शुरूआत होती है। जो चारों दीवारों पर निम्नप्रकार हैः- मंदिर के आंतरिक भाग में प्रवेश करते ही ऐसा महसूस होता है मानो शिव प्रभू पार्वती जी के साथ आने वाले श्रध्दालूओं को अपने श्रीमुख से ज्ञान का संचार करा रहे हों मानो भोले बाबा कह रहे हों कि,हे मानव तुम्हारा मोक्ष इन्हीं अमृत श्लोकों में है, इसे ध्यान से सुनोः-

सहज मिले सो दुध है, मांग मिले सो पानी।

कह कबीर वह रक्त है, जा में खीचातानी।।

(कृष्ण गायों के साथ बांसुरी बजाते हुए फोटो के साथ लिखा हुआ है।)

।।जय श्री झाडखण्डनाथ।।

आंतरिक भाग में प्रसाद बांटने का कमरा है। कमरे पर बोर्ड लगा हैः Annaparna rattan prasadama.

अब हम उत्तर दिशा मे आगे बढते हे भोले बाबा के महतभ्य के स्वर का अहसास जारी रहता हैः-

तुम्हारे हृदय की नीवरता में भगवान् तुम से बोलेंगें और तुम्हारा

 

पथ प्रदर्शन कर तुम्हें लक्ष्य की ओर ले जायेगें लेकिन उसके लिये

 

तुम्हें भागवत करूणा और प्रेम में पूरा विश्वास होनो चाहिये।

 

।।जय श्री झाडखण्डनाथ।।

 

चहि चंदन हो या धूप, जूही हो या कुमुदिनी , इन सबकी सुगंधों से सदाचार की सुंगध उत्तम है। धूप और चंदन में जो सुगंध है वह अल्प मात्रा में है। परन्तु सच्चरित मनुष्य से जो गंध निकलती है वह सर्वोत्तम होती है और देवताओं तक फैलती है।

 

।।जय श्री झाडखण्डनाथ।।

 

पृथ्वी पर कठिन घड़ियां आती है। ताकि वे मनुष्य की अपक्षुध्द स्वार्थ

 

परता पर विजयी होने के लिए बाधित करे। और वे सहायता

 

और प्रकाश के लिये पूरी ताकत से भगवान् की और बढें।

 

।।जय श्री झाडखण्डनाथ।।

 

इसके बाद एक गेट है ऊपर जाने के लिए व बाबा गोविन्द्नाथ की समाधि का स्थान शुरू हो जाता है। एक गेट दक्षिण में है मण्डपम् में व दूसरा द्वार पूर्व में है जो यज्ञ स्थल से होता हुआ बाहर निकलता है। इसके बाद नन्द कुटिर है। बाबा श्री गोविन्द्नाथ परिसर में उत्तर दिशा  दीवार पर अमृत श्लोक लिखे हैः-

 

बहुत ही कम है ऐसे लोग जो भगवान् पर श्रध्दा और

 

विश्वास की चट्टान पर मजबूती से खडे रह सकते है।

 

 

।।जय श्री झाडखण्डनाथ।।

 

क्या चैत्य प्रेम अपने बल पर ऊँचे से ऊँचे सत्य तक पहुँच सकता है( हाँ अवश्य ) व्यक्ति यह कैसे जान सकता है कि उसमें भगवान् के लिये पूर्ण चैत्य प्रेम है?

 

अंहकी अनुपस्थिति से शुध्द भक्ति से भगवान् के प्रति आधीनता से और समपर्ण से

 

।।जय श्री झाडखण्डनाथ।।

 

सोचो

 

जीवन कालके भविष्य के लिये तो आपने बहुत कुछ प्रबंध कर लिया ।

 

किन्तु

 

जीवन समाप्त होने के बाद वाले भविष्य के लिये आपने क्या किया?

 

सावधान

 

तुम्हारी नाजायज कमाई का फायदा कोई भी उठा सकता है।

 

किन्तु

 

तुम्हारे नाजायज  कर्मो का फल तो तुम्हें ही भुगतना पडेगा।

 

 

।।जय श्री झाडखण्डनाथ।।

 

चिद्रूपेण परिव्याप्तं त्रैलोक्यं सचराचरम्।

 

तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।

 

Salutations to the guru who has made it possible to realize him who as consciousness pervades three worlds with their movable and immovable objects.

 

 

।।जय श्री झाडखण्डनाथ।।

 

सर्वश्रुतिषिरोरत्नसमुदासितमूर्तये।

 

वेदान्ताम्बुजयसूर्याय तस्मै श्रीगुरवे नमः।

 

salutations to the guru whose form is radiant with the jewel of vadanta and who is the sun that causes to blossom the lotus of Vedanta.

 

 

।।जय श्री झाडखण्डनाथ।।

 

अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञजनशलाकया।

 

चक्षरून्मीलिंत येन तस्मै श्रीगुरवे नमः

 

salutations to the guru who with the collyrium stick of knowledge

 

has opened the eyes of one blinded by the disease of ignorance.

 

।।जय श्री झाडखण्डनाथ।।

 

न गुरोरधिकं तत्त्वं न गुरोरधिकं तपः।

 

तत्त्वज्ञानात् परं नास्ति तस्मै श्रीगुरवे नमः

 

There is no higher truth than the guru , no higher penance than (service to) the guru , and there is nothing higher than Realisation . salutations to that guru.

 

।।जय श्री झाडखण्डनाथ।।

 

गुरूर्ब्रहा्रा गुरूर्विष्णुर्गुरूर्देवो महेष्वरः।

 

गुरूरेव परं ब्रहा्र तस्मैः श्रीगुरूरवे नमः।।

 

The guru (spiritual teacher) is brahma , the guru is Vishnu, the guru is the lord shiva, the guru is verily the supreme Brahman. Salutations to the guru!

 

।।जय श्री झाडखण्डनाथ।।

 

आदित्यस्य गतागतैरहरहः संक्षीयते जीवितं

 

व्यापरैर्बहुकायभारगुरूभिः कालो न विज्ञायते।

 

द्दष्ट्वा जन्मजराविपत्तिमरणं त्रासश्च नोत्पद्यते

 

पीत्व  मोहमयीं प्रमादमदिरामुन्मत्तभूतं जगत्।।

 

।।जय श्री झाडखण्डनाथ।।

 

सुर्य के उदय और अस्त से आयु नित्य प्रति क्षीण हो रहीं है सांसारिक प्रपंचों में प्रवृत अधिक कार्यभार के कारण बीता हुआ समय प्रतीत नहीं होता तथा जन्म वृध्दावस्था और मृत्यु का त्रास भी भयभीत नहीं करता। इस प्रकार यह जगत मोहमयी प्रसाद मदिरा को पीकर उन्मत्त हो रहा है।

 

।।जय श्री झाडखण्डनाथ।।

 

Om to realise god for one self and others is and should be the end of human life selfishness kills the solu, destroy it but take care that

 

Your altruism does not kill the souls of others (sir garudev)

 

।।जय श्री झाडखण्डनाथ।।

 

अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्।

 

तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।।

 

Salutations to the guru who has made it possible to realise him by whom this entire universe of movable and immovable object is pervaded.

 

सभी सच्ची प्राथनाऐं स्वीकृत होती है।

 

हर प्रार्थना का उत्तर मिलता है।

 

।।जय श्री झाडखण्डनाथ।।

 

स्थावरं जड्ढमं व्याप्तं येन कृत्स्नं चराचरम्।

 

तत्पंद दर्शित येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।।

 

Salutations to the guru who has made it possible to realize him by whom all this world, animate and inanimate, movable and immovable, is pervaded.

 

।।जय श्री झाडखण्डनाथ।।

 

Om these god-realisers constitute a blessed community and on account of their intense love for afflicted mankind they live only for its benefaction and betterment proclaiming from pole to pole,like a rumbling cloud the enternal gospel of god from everlasting to everlasting. 

 

।।जय श्री झाडखण्डनाथ।।

 

सभी कठीनाइयां श्रध्दा की सहन शक्ति परखने के लिये होती है।

 

।।जय श्री झाडखण्डनाथ।।

 

इसके बाद तीसरा द्वार उत्तर दिशा  वाला आता है, जो परिसर से बाहर रोड पर खुलता है। इस गेट के पास 18 सीढीयां है उपर जाने के लिए | तिबाराः- यह स्थान उत्तर दिशा मे है तीसरे गेट के पास है। यह तिबारा पूजा करने के काम में लिया जाता है यहां मत्रों द्वारा भक्तगण पूजा करते है इसके पूर्व व पश्चिम में एक-एक कमरा बना हुआ है। इसकी उत्तर दिशा  वाली दीवार पर अमृत श्लोक लिखे हैः-

 

जो भगवान की कृपा पर विश्वास करता है उसके लिये कृपा अनंत है।

 

(श्रीकृष्णजी की फोटो के साथ लिखा हुआ है।तथा कमरे की खिड़की जालीदार है।)

 

।।जय श्री झाड़खण्डनाथ।।

 

ओंरो के साथ सख्ती करने से पहले अपने साथ कठोर बने।

 

(राधा कृष्ण की फोटो के साथ लिखा हुआ है।)

 

इसके बाद पांच महराब के साथ एक तिबारा है इसे पूजा के काम में लेते है इसमे दो कमरे है।

 

।।जय श्री झाड़खण्डनाथ।।

 

क्रामान्मोहाद मयाल्लोभा सन्ध्यां नातिक्रमेत् द्विजः।

 

सन्ध्यातिक्रमवाद विप्रो ब्राह्मण्यात्पतते यतः।।

 

ब्राह्मण काम से , मोह से , लोभ से सन्ध्या कर्म न छोडे ।

 

सन्ध्या के त्याग, से ब्राह्मणब्राह्मण्त्व से नष्ट हो जाता है।

 

।।जय श्री झाड़खण्डनाथ।।

 

अपने ऊपर संयम करने से बड़ी विजय और कोई नहीं है

 

(श्रीकृष्ण गायों के साथ बंसुरी बजाते हुए फोटो के साथ लिखा हुआ है)

 

।।जय श्री झाड़खण्डनाथ।।

 

इसी दिशा  में दिवार के सहारे पूर्व से पश्चिम दिशा  की तरफ चले तो आती है रत्नकुटीर यह बुर्ज उत्तर -पश्चिम के कौने में बनी हुई है। आगे उत्तर से दक्षिण दिशा  की तरफ में चलने पर पश्चिम दीवार में चौथा द्वार हैं। यह पीछे विश्राम ग्रह (व्यवस्थापक) में खुलता है। इसी दिशा  में आगे चलने पर प्रशांतनीलीयम आता है। इसकी दीवार में अमृत श्लोक हैः-

 

दो दिन का बासीया विस्तार करें मुदत्त का जहॉ से तू आया वहॉ से तू आया वहॉ ही

 

चला जायेगा नेकी को याद कर बदी को बिसार पल्ले कुछ खर्च कर आगे

 

जा खायेगा कहे फक्क्ड़ देवीदास पानी में अहमे ही गल जायेगा।

 

।।जय श्री झाडखण्डनाथ।।