धूनी/हवन कुण्ड
यह स्थान शिवलिंग परिसर के पास दक्षिण दिशा में है यह वह स्थान है जहां पर बरसों पहले यानि 1900 से पहले एक शिव भक्ति में लीन मुस्लिम फकीरनी ने एक बालक को धूनि लगा कर शिव भक्ति में बैठाया था जो बाबा गोविन्द्नाथ के नाम से प्रसिद्ध हुए । यह स्थान व यहां कि पवित्रता के साथ इसकी महिमा इतनी महान् है कि इस स्थान पर कद्म रखने मात्र से मनुष्य सारे दुखों पर विजय प्राप्त कर लेता है। इससे गौरतलब व आश्चर्य कि बात यह है कि इस स्थान पर बने धूनि कुण्ड़ में अग्नि जब से प्रज्जवलित हुई है तब से आज तक यूहीं यहां के व्यवस्थापक व अनन्य शिव भक्त श्री रतनलालजी सोमानी ने कायम रख रखी है जो एक शिव श्रद्धा भक्ति विश्वास का शान्ति प्रतिक है। इस स्थान पर बाबा गोविन्द्नाथजी कि तस्वीर लगी है जो आज भी शिव धूनी को देते हुए से प्रतित होने के साथ मानो यह संदेश दे रहे हो जन मानस को कि शिव धूनी को यहीं समाज के उत्थान के लिये जलाये रखना यह शिव आदेश है और शायद यही कारण है कि यहां माथा टेकने भर से कष्टों से छुटकारा मिल जाता है जो अप्रत्यक्ष रूप से महादेव का आर्शिवाद भी है। यहां यह महसूस किया गया है कि लोग मन में विकार लिये हुए आये है परन्तु इस स्थान पर आते ही वह अपने आप को हल्का व मन में शांत भाव को लिये हुए जातें है इस स्थान पर बैठ कर ही श्री सोमानीजी शिव प्रभू के आर्शिवाद के रूप में श्रीविभूति बडे़ श्रद्धा भाव से लोगो को देते है इसी भावना के साथ कि झाडण्डनाथ महादेव सबके कष्ट दूर करे। इस स्थान को लोहे की जाली द्वारा पूर्व व पश्चिम में कवर किया हुआ है तथा उत्तर दिशा में कुछ भाग को कवर करते हुए बीच में खुला रखा है भक्तों के आने जाने के लिए। हवन कुण्ड के सामने बाबा की तस्वीर के पीछे के हिस्से में पूर्व व पश्चिम दिशा में एक.एक कमरा बना हुआ है इसमे पुजारी अपना कार्य करते है।
धूनि कुण्ड के ऊपर वाली दीवार पर शलोक
किं तेन हेमगिरिणा रजताद्रिणावा। यमाश्रिताश्च तरवस्तरवस्त एव।।
मन्यामहे मलयमेव यदाश्रसेणा। कंकोल-निम्ब-कुटजा अपि चन्दनाः स्युः।।
।। जय श्री झाडखण्डनाथ।।
सुर्वणा पर्वत अथवा रजत पर्वत कैलाश से क्या लाभ
जहाँ पर स्थित वृक्ष वैसे ही रह जाते है।
धन्य तो
मलियागिरी है जिसके आश्रम में कंकोल नीम और कुटज
जैसे कड़वे वृक्ष भी चन्दन समान सुगन्धित हो जाते है।
।। जय श्री झाडखण्डनाथ।।
उत्तर दीवार के पूर्व कौने में अमृत श्लोक