सुविधाएँ :-
यह स्थान तीर्थ स्थली के दक्षिण पूर्व के कौने में बनाया गया है यहां पुरूष व महिलाओं के लिए अलग-अलग सुविधा केन्द्र बनाए गये है जो पूर्णतः साफ सुथरे रहते है।
कार्यालय (मैनेजर) पूछताछ कार्यालयः-
यह कक्ष भी धूनी कुण्ड परिसर के पूर्व दिषा में बना है। यहां तीर्थ स्थली के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
पीने का पानी :-
श्रीझाडखण्डनाथ तीर्थ स्थली में यह स्थान राजागोपरम् यानि आंतरिक भाग के मुख्य प्रवेष द्वार से लगता हुआ दक्षिण दिषा में बना हुआ है इसका वर्णन हमने ऊपर किया हुआ है कि यहां तीन नल लगे हुए है इनका पानी पीने व हाथ धोने के काम में लिया जाता है।
सप्तऋषि व धु्रव तारा :-
इसे षिव कि महिमा की कहेगें कि श्रीझाडखण्डनाथ षिवज्योर्तिलिंग तीर्थ स्थली में सात पीपल के पेड़ आकाष में विद्यमान सप्तऋषि तारों के रूप मे इस तीर्थ स्थली में लगें हुए है। यह देखने में सप्तऋषि तारों के आकार को दर्षाते है साथ ही ध्रुवतारे के समान एक वट वृक्ष लगा हुआ है इस सबके होने से मंदिर परिसर र्स्वग का आभास कराता है।
द्रविड षौली में झाडखण्ड महादेव मंदिर का नया स्वरूप :-
स्वयंभू श्री झाडखण्डनाथ तीर्थ स्थली पूर्व मुखी होने के साथ वर्गाकार है। यह स्थान हर तरफ से पूजा जा सकता है। श्रीझाडखण्डनाथ महादेव मंदिर के नये रूप द्रवीड ष्षैली का निर्माण कार्य 19 अप्रेल 2000 से प्रारम्भ कराया गया था, जो समाप्ति पर है। यह कार्य वर्तमान में श्री झाडखण्डनाथ तीर्थ स्थली के व्यवस्थापक श्री रतनलालजी सोमानी ने करवाया है। पंचनाथों में एक नाथ श्रीझाडखण्डनाथ षिव ज्योर्तिलिंग द्रविड ष्षैली के नये रूप में बनने के कारण द्रविड षैली में उत्तर भारत का एकमात्र षिव मंदिर बन गया है। वैसे भी यह स्वयंभू षिव ज्योर्तिलिंग पूरे भारत वर्ष में अपना अलग ही स्थान रखता है परन्तु इस द्रविड ष्षैली के निर्माण कार्य के बाद इसका आकार व स्वरूप देखते ही बनता है। श्री रतनलालजी सोमानी के अनुसार पूरे उत्तर भारत में द्रविड ष्षैली पर आधारित है। द्रविड ष्षैली में मंदिर भाग के गर्भग्रह जहां षिवलिंग व पंचायत है उस स्थान को कहा जाता है कृपाग्रहम व जो मंदिर के आगे का भाग है उसे मंडपम कहा जाता है तथा जो रामकुंज व कुष्णकुंज के बीच में है उसे राजगोपरम् कहा जाता है। कृपाग्रहम के अन्दर षिवलिंग के ठीक ऊपर एक अष्ट कमल का फूल बनाया गया है जिसमे 56 पंखुडियाँ है। यह पंखुडियाँ रामेष्वरम् मंदिर के कमल के फूल के अनुसार बनी हुई है। कृपाग्रहम में 76 मूर्तियां,मंडपम में 12 मूर्तियां व राजागोपरम् में 155 मूर्तियों से यह परिसर पूर्ण होता है।