यह शिव लिंग की परम्परानुसार बनाया गया है। इसमें चारों तरफ दीवारें है तथा इसमें एक ऊँची मीनार है जिसे राजागोपुरम् कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि दूर से इन मीनार को देखने भर से इस मंदिर की चमत्कारी शक्तियों व इसमें निवास करने वाले भोले बाबा की स्तुति हो जाती है तथा शिव उसे लिंगम अथवा अपनी शिव भक्ति प्रदान करते है। इसे स्थूल लिंगम के नाम से संदर्भित किया जाता है।
द्रविड़ शैली में मंदिर भाग के मुख्य प्रवेशद्वार को राजागोपरम् कहां जाता है। राजागोपरम् के मध्य में खडे होकर भोले बाबा के दर्शन किये जा सकते है। श्रीझाड़खंड महादेव तीर्थ स्थली में राजागोपरम् में प्रवेश पूर्व दिशा से किया जाता है यह भाग मण्डपम् से जुड़ा हुआ है और यह पच्छिम दिशा में बढते हुए सीधा कृपाग्रहण्म (गर्भग्रह) में श्रीझाड़खंड महादेव शिव ज्योर्तिलिंग के दर्शनों को ले जाता है। राजागोपरम् में कुल 155 मूर्तियां बनाई गई है।
कृपाग्रहम का बाहरी वर्णन :-
स्वयंभू श्रीझाड़खंड महादेव शिव ज्योर्तिलिंग के गर्भग्रह (कृपाग्रहम) के पुराने आंतरिक स्वरूप (ढांचे) को ज्यों का त्यों रखा गया है परन्तु इसके बाहरी भाग को द्रविड शैली में बदल दिया गया है। द्रविड़ शैली में बनने के बाद इन कृपाग्रहम् से निगाहे हटती ही नही है, क्यों की इस भाग में प्रभू की अनेकों मुद्राओं का वर्णन है। कृपाग्रहम के रूप रंग में मानव ऐसा रम जाता है कि उसे सुद-भुद नहीं रहती। प्राचीन काल में गर्भ ग्रह में प्रवेश के लिए कुल पांच द्वार हुआ करते थे, लेकिन वर्तमान में केवल दो प्रवेशद्वार ही है ।
प्रवेश द्वारों का वर्णन :-
मुख्य भाग :-
प्राचीन काल में यहाँ तीन प्रवेशद्वार जा महराव के रूप में पूर्व दिशा में बने हुए है इन्हें वर्तमान में लोहे की रेलिंग द्वारा बंद किया हुआ है। यही भाग कृपाग्रहम का मण्डपम् में है और यही मण्डपम् से जुडा है जो राजागोपुरम् तक जाता है। गर्भग्रह (कृपाग्रहम्) का मुख्य यानि आगे का हिस्सा है यह भाग मुख्य प्रवेशद्वार राजागोपुरम् से साफ देखा जा सकता है। वैसे इस भाग को कृपाग्रहम (गर्भग्रह) का मुख्य भाग ही मान कर द्वारों की संज्ञा से अलग रख कर देखा जाये तो ज्यादा सही होगा क्योंकि वास्तविकता भी यहीं है। मण्डपम् से ही लोग भोले नाथ के दर्शनों का आनंद पाकर भाव विभोर होते है।
कृपाग्रहम का प्रवेशद्वार :-
एक प्रवेशद्वार उत्तर दिशा में है यह प्रवेशद्वार आम दिनों में बंद ही रहता है इस प्रवेशद्वार को त्यौहार के दिनों में ही भक्तों के लिए खोला जाता है। त्यौहारों में लोगों को इसी प्रवेशद्वार से कृपाग्रहम (गर्भग्रह) में आना होता है।
कृपाग्रहम का दूसरा प्रवेशद्वार :-
दूसरा प्रवेशद्वार दक्षिण दिशा में है। यह प्रवेशद्वार आम दिनों में खुला ही रहता है। यह प्रवेश द्वार सांय की आरती के समय से भगवान् के शयन तक बंद ही रहता है। इसी प्रवेश द्वार से त्यौहारों में भक्तों की निकासी होती है। प्रवेश द्वारों की जानकारी के बाद हम चलते है कृपाग्रहम(गर्भग्रह) के अंदर जहां हमें हमारे भोलेनाथ के सम्मोहिनी दर्शनों का लाभ लेना है :-
जिसे स्वयंभू शिव ज्योत्रिलिंग दर्शन कहते है
स्वयंभू शिव ज्योतिर्लिंग :-
गर्भग्रह के बीचों बीच सफेद संगमरमर की जलहरी में भुरभुरे रंग का रूप लिए हमारे शिवज्योंर्तिलिंग है जो हर आने वाले भक्त को दर्शनो का लाभ तो देते ही है साथ ही उसके अपनी छत्रछाया में लेकर इस भव सागर से तरने का ज्ञान भी प्रदान करते है। यहीं स्वयंभू शिव ज्योर्तिलिंग श्री झाडखण्डनाथ है। यहीं शिवज्योंर्तिलिंग पंचनाथों में एक नाथ श्रीझाडखण्डनाथ है। महादेव की सेवा में पश्चिम दिशा में क्रमश पूर्व को देखने हुए सफेद सगमरमर में श्री गणेशजी है इनकी ही सर्वप्रथम पूजा करके ही कार्य की शुरूआत होती है। श्री गणेशजी के पास सफेद संगमरमर मे स्वामी कार्तिकजी है जो श्रीझाडखण्डनाथ की सेवा में उपस्थित होकर महादेव के आदेशो की पालना कर रहें है। श्रीझाडखण्डनाथ के इस दरबार में उत्तर पूर्व के कोने की एक अलमारी में दक्षिण दिशा में देखते हुए श्री राम भक्त संकट मोचन श्री हनुमान जी है, जो अमर अजर होने के साथ रूद्र अवतार भी माने जाते है। श्री हनुमानजी के पास ही सालगरामजी भी है जिनकी पूजा अर्चना तुलसी द्वारा होती है। बताया जाता है कि बहुत समय पहले एक मूर्ति खण्डित होने के कारण कृपाग्रहम में पश्चिम दिशा वाली दीवार में स्थान बनाकर श्री गणेशजी माता पार्वतीजी व स्वामी कार्तिकजी को विराजमान किया गया था। कृपाग्रहम् की पश्चिम दीवार के ऊपरी भाग में कैलाश पर्वत पर शिव प्रभू व माँ पार्वती के साथ गणेशजी विराजमान का अतिसुन्दर चित्र बना हुआ है। कृपाग्रहम में विराजमान श्री गणेशजी, मातापार्वतीजी, स्वामि कार्तिकजी के साथ राम भक्त श्री हनुमानजी व श्री सालगरामजी को पंचायत के रूप में भी बोला जाता है। कृपाग्रहम (गर्भग्रह) के अंदर श्री झाडखण्डनाथ शिवज्योर्तिलिंग व पंचायत के ऊपर एक विशाल अष्ट कमल का फूल बनाया गया है। इस कमल में 56 पखुडियां है। यह पखुडियां ठीक वैसी ही है जैसी श्रीरामेश्वरम् मंदिर में कमल के फूल की पखुड़ियां बनी हुई है। कृपाग्रहम के चारों ओर कुल 76 मूर्तियां बनाई गई है।
स्वयंभू श्रीझाडखण्डनाथ शिव ज्योर्तिलिंग के दरबार में आकर इतने आंनदित वातावरण का छोड कर मानव कहां भटकना चाहेगा इसीलिए यह बात प्रचलित है कि जो भी भक्त एक बार यहां आकर भोलेनाथ के दर्शन कर लेता है वह यहां का ही होकर रह जाता है। श्रीझाडखण्डनाथ के दर्शनों से मानव मोक्ष तो निष्चित है ही परन्तु यहां के स्मर्ण मात्र से ही मानव को तीर्थ यात्रा का सुख व लाभ प्रदान हो जाता है।
श्रीझाडखण्डनाथ तीर्थ स्थली के गर्भग्रह में शिवज्योंर्तिलिंग की आभा व यहां के वातावरण की सौन्दर्यता ने लेखकों व कवियों को भी प्रभावित किया हुआ है। यहां के प्राकृतिक सौन्दर्यता व मन की बात शब्दों के रूप का उदाहरण प्रस्तुत करता है :-
श्रीझाडखण्डनाथ महादेव के दर्शनों से प्रभावित हो कर कवि मंन्जूनाथजी ने बड़ा सुन्दर वर्णन अपनी भावनाओं को शब्दों की माला में ढाला हैः-
मार्गे मंजू मीलन्मधुमालती संगंधयुत रावलरचित जल बंध्समविनी क्षयेथाः निर्यन्जल कोलाहलकौतुकमुदीश्य ततः समयं समीक्ष्यंनवनौविनोदर मीयेथाः।
मंजुनाथ पश्चिमेन सेनारूनिवेशतटे नारीनिकेटेमुं नवप्राकरार प्रवन्दिथाः खण्डमिव गोदाज्झाड़खण्ड़ मत्रिवेन्देः
अर्थात :- चमेली के फूलों से वातावरण सुवासित है ऐसा रावलजी का बनाया हुआ जलबंध मार्ग में देखियें। बहते हुये जल का कोलाहल और कौतुक देख चुकने पर यदि समय हो तो इस बंध में नौका विहार का भी आन्नद लीजीये। बांध में पश्चिम की ओर सेना के परिसर के निकट जल के किनारे की नवनिर्मित परकोटे में पहुचिये जहां विहार करते हुये आशुतोश भगवान शिव की प्रतिक्षा में उनकी सेवा के लिये मानो स्वर्ग का एक खण्ड ही भूतल पर उतर आया है। यह स्वर्गोमय भूखण्ड झाडखण्ड है और इसलिये प्रणभ्य है।