गोविन्द व सूरज बाड़ी :-
श्रीझाडखण्डनाथ तीर्थ स्थली के आंतरिक परिसर में बगीचों को बाड़ी के नाम से जाना जाता है। एक बाड़ी दक्षिण में बनी हुई है, जिसे गोविन्द्बाड़ी का नाम दिया गया है तथा दूसरी उत्तर दिशा में बनी हुई है जिसे सूरज बाडी का नाम दिया गया है इन बाडीयों में घास का लोन व दो फासले के पेड, दो करोंदे के पेड, दो आम के पेड, दो रूद्राक्ष , दो नींबू दो अमरूद, दो सीताफल, एक अशोक, एक बीलपत्र है। पेड़ो का समूह अपने प्रभू शिव कि सेवा में खड़़े रहने में गर्व तो महसुस करते ही होगे , उन्हें देख कर ऐसा अहसास स्वतः होता है जैसे कोई ऋषि ध्यान मग्न होकर भोले नाथ को दिव्य दृष्टि से निहार रहा हो तथा बोल रहा हो है भोले नाथ हमें जन्मों-जन्मों तक यूहीं अपनी सेवा में रहने का सौभाग्य प्रदान करना।
कुँआ :-
मंदिर के अन्दर दक्षिण पूर्व के कोने मे कुँआ बना हुआ है जिससे भक्तो को पर्याप्त पानी पूजा के लिए हमेशा उपलब्ध रहता है इसमें बिजली की मोटर भी लगी हुई है।
कुण्ड़ :-
यह कुण्ड प्रंशातलिनियम के सामने पूर्व दिशा में बना है इसमें नीचे उतरने के लिए छोटी सीढीयां भी बनी हुई है इसका पानी यहां पर रहने वाले पक्षियों व मोरों के पीने के काम आता है यहां हमेशा मोरों का समुह क्रिड़ाऐं करता दिखाई देता है जो मन को सकून देता है।
पक्षियों की दाना बाड़ी :-
इस मंदिर परिसर में खासतौर पर कबुतरों , तोतो,मोरो व अन्य पक्षियों के लिये दाना चुगने के लिये एक कांटे की दीवार से स्थान बनाया गया है जिसे पक्षियों की दानाबाड़ी के नाम से जाना जाता है यह उत्तर दिशा में है। इस कबुतरखाने में आने वाला करीब- करीब हर शिव भक्त दाना डालता है जिन्हे हजारों कि तादात में कबुतरों, मोरों , तोतो व अन्य पक्षियों का समूह चुगता हुआ पाया जाता है यह समूह एक ऋषियों के विशाल समूह के समान शिव प्रसादी लेते हुए से प्रतित होता है। इसे देख कर मन में एक आत्म प्रसन्नता का अहसास होता है तथा उनसे उत्पन्न कर्ण प्रिय ध्वनि से लगता है कोई लय में वेदों के लोको का उच्चारण कर रहा है। यह समूह सम्पूर्ण मानव जाति को सद्भावना के साथ जात-पात का भेद-भाव कर एक साथ रहने का संदेश देता है ओर शायद यही वजह है कि इस मंदिर में हर वर्ग व जाति का भक्त आता है व महादेव के दर्शन करके अपने आप को धन्य मानता है।