बाबा (गुरू) गोविंदनाथ जी की समाधि स्थल का वर्णन व इस पवित्र स्थान की महत्त्वताः-
श्रीझाड़खण्डनाथ तीर्थ स्थली का महत्व पंचनाथों में एक नाथ श्रीझाड़खण्डनाथ होने के कारण है उसी प्रकार इस महान पावन पवित्र स्थान में बाबा गोविंदनाथजी की महानता है। बाबा गोविंदनाथजी की समाधि स्थली की महानता इसी बात से लगाई जा सकती है की लोग महादेव के दर्शनो से पहले बाबा गोविंदनाथजी की समाधि से होते हुए दर्शनो को आते है। यहां लोग घंटों ध्यान मग्न रह कर बाबा का ध्यान करते है। भारत में शायद ही ऐसा कोई साधु संत होगा, जो श्रीझाड़खण्डनाथ तीर्थ स्थली पर न आया हो और उसने बाबा की समाधि के सामने नतमस्तक होकर प्रार्थना न की हो। लोगों का तो यहां तक कहना है की उन्होंने जगह- जगह भटक कर अपने दुखों व रोगों से मुक्ति के लिए प्रयास किया और जब सफलता नहीं मिली तो वह हताश होकर महादेव के दर्शन किये है तो उनको लाभ ही नहीं दुखों से छुटकारा तो मिला ही है साथ ही वह पूर्ण स्वस्थ ही हो गये है। यहिं वजह है हम प्रयास कर रहे है ऐसी पवित्र स्थली की तीर्थ यात्रा कराने की जिससे मानव भव सागर को पार कर सके और उसको मोक्ष प्राप्त हो। आईये हम मिल कर बाबा गोविंदनाथजीकी समाधि की यात्रा करते हुए बाबा के दर्शनो का लाभ ले ।
’’जय बाबा गोविंदनाथजी की’’
यह पवित्र स्थान श्रीझाड़खण्डनाथ तीर्थ स्थली के आंतरिक भाग में उत्तर पूर्व के कोने में बनाया गया है इस स्थान को चारों ओर से पक्की छोटी दीवार यानि मुडेर से कवर किया गया है इस परिसर में आने जाने के तीन द्वार है इन तीनों गेटों से आप आ जा सकते हैः-
पहला द्वार
पश्चिम में है यह श्रीझाड़खण्डनाथ तीर्थ स्थली सीमा के उत्तर दिशा वाले गेट के रास्ते से मिलता है तथा यह दानाबाड़ी के बीच मे सीधा मण्डपम् में आता है। यहां बिना किवाड़ के गेट के ऊपर ग्लोसाईन बोर्ड पर भी आपको लिखा हुआ मिल जायेगा ’’समाधि बाबा गोविन्द नाथजी की’’। इसलिए अन्जान व्यक्ति को तलास करने की जरूरत महसूस नहीं होती , वैसे भी बाबा गोविन्द्नाथ अपने शिष्यो की मन की बात जानकर स्वतः ही अपनी ओर खिंच लेते है।
दूसरा द्वार
बाबा गोविन्दनाथ जी की समाधि सीमा की दक्षिण दिशा वाली दीवार में छोटा गेट है जो मण्डपम् मे ही जाता है।
तीसरा द्वार
बाबा गोविन्दनाथ जी की समाधि सीमा की पूर्व दिशा वाली दीवार में है जो यज्ञ स्थल से होता हुआ बाहर पार्किग स्थल में से होता हुआ बाहर निकल जाता है। बाबा का समाधि स्थल पूर्णतः स्वच्छ है। बाबा गोविन्दनाथजी की उत्तर मुखी सफेद सगमरमर की छोटी मगर पूर्ण तेजस्मयी प्रतिमा एक छोटे कमरेनुमा चबुतरे के बीचो बीच स्थापित की गई है। इस पवित्र कमरेनुमा स्थान को तीन दिशाओं पूर्व, पश्चिम, दक्षिण से दीवारो द्वारा कवर करके उत्तर दिशा में एक बडा कांच लगाया गया है। कांच लगा होने से बाबा गोविन्द्नाथ के सुंदर दर्शन होते है और भक्त गण अपने गुरू के दर्शनो का लाभ लेते है बाबा गोविनद्नाथजी की प्रतिमा के पीछे अंदर के भाग मे दक्षिण दिशा वाली दीवार पर एक विशाल पेंटिग में शव-पार्वजी के विवाह का मनमोहक दृष्य दर्शाया गया है। इसके साथ ही पूर्व व दक्षिण दिक्षा वाली दीवार पर अन्दर विषाल कांच लगाये गये है इन कांचो से बाबा की प्रतिमा के दर्शन भी होते है। बाबा गोविंदनाथजीकी प्रतिमा के मुख के समक्ष उत्तर दिशा में पीतल के खडाऊ रखे हुए है। यह समाधि परिसर पौधे लगे गमलों से भरा हुआ है जो वातावरण को सुगन्धित बनाये रखता है। यहां लोग बाबा गोविन्दनाथजी का ध्यान करते है । इस परिसर को छाया से परिपूर्ण रखता है। इस परिसर के पश्चिम दिशा में एक घना वृक्ष है जो समाधि परिसर को छाया से परिपूर्ण रखता है। इस वृक्ष पर एक छोटा घंटा भी है जो बाबा को आने वाले भक्तों द्वारा अपने आने का भान कराता है। इस समाधि स्थली में यह अहसास होता ही नहीं है कि बाबा गोविंदनाथजीका स्थूल शरीर हमारे बीच अब नहीं है यहां तो अहसास होता है बाबा के प्रवचनों का जो यहां के परिसर में लिखे हुए है। आओं हमस ब मिल कर प्रवचनों का लाभ लेः-
।। जय श्री श्रीझाड़खण्डनाथ ।।
बाबा गोविंदनाथजीकी समाधि स्थल के बाहर वाली पूर्व दीवार पर अमृत शलोक लिखाहै
आदित्यस्य गतागतैरहरहः संक्षीयते जीवितं
व्यापारैर्बहुकार्यभारगुरूभिः कालो न विज्ञायते।
द्दष्ट्वा जन्मजराविपत्तिमरणं त्रासष्च नोप्तद्यते
पीत्वा मोहममयीं प्रमादमदिरामुन्मत्तभूतं जगत्।।
Having drunk the intoxicating wine of delusion the people (world) have got quite mad and senseless; for, they do not see that their life is gradually shortened with the daily rising and setting of the SUN; for, they cannot know that time is rapidly passing away, on account of their being seriously engaged with a variety of affairs; and, for they are not frightened even at the sight of birth, old age, misfortunes and death of others.
।। जय श्री श्रीझाड़खण्डनाथ।।
बाबा की समाधि स्थल के बाहर पीछे वाली दीवार (यानि दक्षिण मे) अमृत शलोक लिखा हैः-
सत्य बोलो,
सत्य कर्म करों,
सत्य की राह लो,
सत्य का उपभोग करों !
।। जय श्री श्रीझाड़खण्डनाथ।।
बाबा की समाधि स्थल के बाहर वाली पश्चिम दीवार पर अमृत शलोक लिखा हैः-
मच्यित : सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि !
अथ चेत्त्वमहकारान्न श्रीष्यसि विनड्. क्ष्यसि !!
।। जय श्री श्रीझाड़खण्डनाथ।।
वृक्ष की विशेषता :- ऐसी भी मान्यता है किइस परिसर में जो पीपल का वृक्ष है उसके नीचे नित्य बैढने से आयु में वृध्दि व लाईलाज रोगों से मुक्ति मिलती है।