"श्री झाडखण्डनाथ-सुप्रभातम्"
कला खट्वाडगिरिजा ,घनसाराड्डभूकगित:|
कर्वगकलित:काय: कैवल्य फलदायक:||
आरण्यं स्थलमास वृक्षलतिकागुल्मावृतं दुर्गमं।
लोक 'झाड' इति प्रसिद्धिमलभद्रूढिप्रयुक्तार्थत:||
तत्खण्डाधिपतिश्चराचरपतिडढधर: शड्डार ||
'देविदास' समाधिसम्मुखमिह श्रीझडखण्डेश्वर: ||
चिरकाल से यह स्थान वृक्षलतादिक झुरमुटों के कारण दुर्गम्य था | ऐसे स्थल को प्रादेशिक भाषा में 'झाड' इस नाम से रूढिप्रयुक्त अर्थवश प्रसिद्धि प्राप्त है | इस भाँति के खण्ड (भूभाग) के स्वामी जड-चेतन के स्वामी गंगा धारण करने वाले, कल्याणकारी श्रीझाडखण्डनाथ यहाँ 'देविदास' नाम के किसी देवीभक्त की समाधि के ठीक सामने विराजमान है|
Surrounded with clusters of creepers and trees there existed a wild, impossible place which has gained fame with frequent and current usaga as “jhada” in the public ; and here sri Jhadakhandesvara,the lord of animate and inanimate being ,auspicious and bearer of Ganga, is seated in front of the tomb of devidasa a devotee of Devi .
||जय श्री झाडखण्डनाथ||
ब्रहमे मुहूर्ते शुभपुण्यकाले, केकानिनादैस्तरूशाखसंस्था: |
देवा ध्रवं व्योम्नि नदन्ति नित्यं, श्री झाडखण्डेश्वर सुप्रभातम्।।1||
नित्य शुभ पुण्यकाल ब्रहम् मुहूर्त में केकाध्वनि द्वारा वृक्षों की शाखाओं पर बैठे हुए (मयूर) मानों देवगण ही गगन से नाद कर रहे है कि हे श्री झाडखण्डेशवरनाथ! यह प्रभात् सुप्रभात् हो।
During the holy and auspicious period between the 4th Ghatika and 2nd Ghatika before sunrise -at dawn-peacoks,seated on the branches of the tree,with their sounds welcome every day the auspicious morning as if Gods constantly pronounce welfare addressing Jhadakhandesvara to make the morning blissful.(1)
||जय श्री झाडखण्डनाथ||
स्वयंभुलिंडडप्रथितप्रकाश आरूण्यभाप्रस्तररूपभास !|
शुभार्धनारीश्वर ! वामदेव ! श्रीझाडखण्डेश्वर सुप्रभातम्||2||
हे स्वंय भुतलिंग रूप से प्रसिद्ध प्रकाशमान ! हे लाल रंग के पाषाण रूप से भासमान ! शुभ अर्घनारीश्वर! पांच रूपो में से एक वामदेव स्वरूप! श्री झाडखण्डनाथ! यह प्रभात् सुप्रभात् हो।
O,selfexistent phallus ,O ,universally celebrated one;O,Glory in the form of stone with redness,O, auspicious half femalelord,O, Vamadeva (one of the five forms of shiva),O, lord of Jnadakhanda may the morning bring bliss to all.(2)
||जय श्री झाडखण्डनाथ||
आरार्तिके नैकशतं मयूरा: शुकाः कपोता: शतश: समन्तात् ।
रूतैर्मनोज्ञैर्बहुधा स्तुवन्ति , श्रीझाडखण्डेश्वर सुप्रभातम् !||3||
आरती के समय सैंकडो मोर सैंकडो तोते अपनी मनोहर मधुर ध्वनि द्वारा आपकी बहुभांति प्रार्थना कर रहे है कि हे श्री झाडखण्डनाथ ! यह प्रभात् सुप्रभात् हो ।
In Arati, (A ceremony performed in adoration of the deity by circular movement of lighted lamps),not only hundreds of peacocks but also hundreds of parrots,pigeons and etc, often all sides, offer prayers with their sweet notes O Jhadakhandesvara the dawn may bring bliss to all.(3)
||जय श्री झाडखण्डनाथ||
घण्टानिनादै: पटहप्रघोषे :,शंखस्वनैस्ताडितंकास्यरावै :|
जडा अपीत्थंस्तनिता नदन्ति, श्रीझाडखण्डेश्वर सुप्रभातम् ||4||
घण्टा कि ध्वनि नगाडो का घोष शंखो का नाद तथा डंकों से बजती हुई घडियालें शब्दायमान हो रही है इस भॉंति ये जड वस्तुएं भी अव्यक्त रूप से यही नाद कर रही है कि हे श्री झाडखण्डनाथ! यह प्रभात् सुप्रभात् हो।
With Sounds of gongs, belis, kettledrums, conch-shells and of bronz fimbria it so appear as if even the inanimates reverberate to utter ‘O lord of Jhadakhanda may this morning be happy :(4)
||जय श्री झाडखण्डनाथ||
वटस्य वृक्षस्त्रिशताब्दवृद्धों , सुपिप्पलारू सप्तमुनीन्द्रसंख्या :|
पश्यन्ति शश्वत्सह नेकवृक्षेः, श्री झाडखण्डेश्वर सुप्रभातम् ||5||
श्री झाडखण्डनाथ तीन सौ वर्ष पुराना वटवृक्ष, सप्तऋषियों की संख्या वाले सात पीपल के वृक्ष अपने साथ अनेक वृक्षों सहित इस सुप्रभात् को निरन्तर देखते रहे है।
O lord of Jhadakanda, about threehundred years old banyan tree, beautiful peepal trees (Fious Religiosa) which are seven in number like the celestial Munis of the Ursa major, together wil other various trees ,are beholding ,from immemorial time ,the happy morning.(5)
||जय श्री झाडखण्डनाथ||
कृष्णोडहिरेकोवसतीह वृद्धो बिलेशयो द्यक्पथमेति जातु।
चक्षु:श्रवा: गायति देव !नित्यं ,श्री झाडखण्डेश्वर सुप्रभातम्||6||
यहॉं एक बूढा काला साँप भी निवास करता है वह प्रायः बिल में ही रहता है कभी.कभी दिखाई दे जाता है द्य आखॅं से सुनने वाला साँप, हे देव ! आपका हमेशा गुण गाता रहता है कि हे श्री झाडखण्डनाथ! सुप्रभात् होवे।
Here dwells an old black serpent which is, at times, noticed staying in its cavern (hole),always admiring your virtues and saying ) Jhadakhandesvara, let the dawn be happy.(6)
||जय श्री झाडखण्डनाथ||
शंभे ! स्वयंभो ! मृड ! विश्वनाथ !ए महेश्वर ! त्रयम्बक नीलकण्ठ !
काशीपते ! भस्मविभूषिताडू ! श्री झाडखण्डेश्वर सुप्रभातम् ||7||
हे कल्याण स्वरूप! हे स्वयं प्रादुर्भूत! हे पालन करने वाले! हे विश्व के स्वामिन! हे महान प्रभो! हे त्रिलोचन ! हे नीले कण्ठ वाले! हे काशीनाथ! हे भस्मसुशोभित देह वाले! हे श्री झाडखण्डनाथ! यह प्रभात् सुप्रभात् हो।
O auspicious one,O self existant, O preserver, O great god, O lord of universe ,O three eyed,O blue throated,O lord of Kasi,O one having body decorated with ashes,Ol ord of Jhadakhanda, may the morning be happy.(7)
||जय श्री झाडखण्डनाथ||
कैलासवासिन् नरमुण्डमाल!, त्रिशूलधारिन् भुजगेन्द्रहार !
पिनाकपाणे ! हिमसत्रिभाड़ !, श्री झाडखण्डेश्वर सुप्रभातम् ||8||
हे कैलाशवासी ! हे मानवों के मुण्डों की माला वाले! हे त्रिशुल धारण करने वाले! हे सर्पो के राजा वासूकि का हार धारण करने वाले ! हे पिनाक नाम का धनुष धारण करने वाले! हे बर्फ के समान श्वेत अंग वाले ! हे श्री झाडखण्डनाथ ! यह प्रभात सुप्रभात् हो।
O deweller of kailas O wearer of garland, O possessor of the Pinaka (bow) in hand ,O snowy white bodied O Jhadakhandesvara let the morning be blissful.(8)
||जय श्री झाडखण्डनाथ||
क्षित्यम्मरूद्व्योमहुताशहीतृ, चन्द्राकरूपा,सुतनूर्दधान !
विश्वेश ! विश्वंभर ! विश्वमूर्ते ! ,श्रीझाडखण्डेश्वर सुप्रभातम् ||9||
हे पृथ्वी जल, वायु, आकाश,अग्नि,यजमान ,चन्द्रमा तथा सूर्यरूप से प्रत्यक्ष अष्ट मूर्तिस्वरूप! हे विश्व के स्वामी,हे विश्व के पालक ,हे विश्वरूप ! श्रीझाडखण्डनाथ यह प्रभात सुप्रभात् हो।
O one having the material form consisting of the earth, water ,air ,sky ,fire,the sacrificer ,the moon, the sun,(eight forms of siva), O lord of universe ,O universal nurisher,O involver of the whols form of universe, O lord of Jhadakhanda,let the morning be auspicious.(9)
||जय श्री झाडखण्डनाथ||
भवोग्रशर्वा: पशुपो महॉश्च, भीमेशरूद्रा वसुनामधेय !
प्रत्येकनाम्नि श्रुतयश्चरन्ति, श्रीझाडखण्डेश्वर सुप्रभातम् ||10||
हें भव,उग्र, शर्व पशुपति महान् ,भीम,ईश तथा रूद्र ये आठ नाम वाले! आपके इन नामों से एक-एक नाम पर ही अन्वेषणशील वेदशास्त्र विचरण करते रहते हैं। हे श्री झाडखण्डनाथ! यह प्रभात् सुप्रभात् बने।
O possessor of eight names as bhava,Ugra,sarva,Pasupa ,the great Bhim ,Esa ,Rudra,each of the above names bears sacred texts, the vedas,are subject to research ; O jhadakhandesvara,may the morning be graceful.(10)
||जय श्री झाडखण्डनाथ||
दक्षाध्वरध्न ! त्रिपुरान्तकारिन् ! सतीश ! गौरीश ! गुरो !गुरूणाम्
वृषध्वजोमाधव ! चन्द्रमौले !, श्रीझाडखण्डेश्वर सुप्रभातम्||11||
हे दक्षयज्ञविनाशक ! हे त्रिपुरासुर को मारने वाले ! हे सतीपति ! हे पार्वतीपति ! हे गुरूऔ के गुरू ! हे बैल की ध्वजा वाले ! हे उमानाथ ! हैं मस्तक पर चन्द्रमा बार करने वाले श्री झाडखण्डनाथ ! यह प्रभात् सुप्रभात् हो |
O destroyer of some sacrifice of daksa, O slayer of the demon tripura,o husband of sati ;O husband of Gauri, 0 everable of the venerables; O bullemblemed;O husband of Uma ,O mooncrested,O lord of Jhadkkhanda may the dawn be auspicious(11).
||जय श्री झाडखण्डनाथ||
मत्तावघूत्या परिदर्शितस्य ,गोविन्दनाथेः समुपासितस्य
बब्बू वणिग्भिरू प्रथितिं गतस्य, श्रीझाडखण्डेश्वर सुप्रभातम् ||12||
'मस्तानी माई' नाम से प्रसिद्ध अवघूती द्वारा दिखलाए गये, बाबा गोविन्दनाथ सम्यक् रूपेण उपासित तथा बब्बू सेठ के नाम से विख्यात स्व. श्री गोविन्दनारायण सोमानी द्वारा प्रसिद्ध किये गये। हे श्री झाडखण्डनाथ! यह प्रभात् सुप्रभात् हो |
Having been brought to notice by a wanton woman,named’ Mastani Mail' well worshipped by Baba Govindanarayana, who was famous as " Babba setha " ye O lord jhadakhanda let he morning be graceful.(12)
||जय श्री झाडखण्डनाथ||
क्षेत्रस्य पावित्र्य सुरक्षिकास्तार: वृक्षाग्रसंस्था मधुमक्षिकास्तार:
गुंजन्ति शश्वन्मघुरस्वरेण , श्रीझाडखण्डेश्वर सुप्रभातम् ||13||
इस क्षेत्र की पवित्रता की रक्षा करने वाली, पेडों की ऊँची शाखओं पर अपने छत्तों में स्थित मधुमक्खियॉं अपनी मधुर ध्वनि से गुंजार रही है कि है श्रीझाडखण्डनाथ ! यह प्रभात सुप्रभात हो |
Preserving the sanctity of the region, on the lofty twigs of trees, there hng hives of bees where been sweetly buzz as if they offer their prayers to Jhadakhandesvara for the glorious morning .(13)
||जय श्री झाडखण्डनाथ||
शिलाश्मविष्णो: पुरतो हनूमान्, अवाड.मुखो डस्तीह विराजमान: |
रत्नेश्वरानन्दनिधे ! स्मरारे ! श्रीझाडखण्डेश्वर सुप्रभातम् ||14||
शालिग्राम शिलास्वरूप श्री विष्णु के आगे दक्षिणभिमुखी हनुमानजी विराजमान है। हे रतनो के अथवा ( बब्बू सेठ के ज्येष्ठ पुत्र रतन लाल के) स्वामी ! आनन्द के खजाने ! अथवा बब्बूजी के कनिष्ठ पुत्र नन्दकिशोर की सब प्रकार की निधि ,कामदेव के शत्रु श्रीझाडखण्डनाथ ! यह प्रभात सुप्रभात् हो।
Just in front of Visnu in the form of Salagrama, there is seated the deity Hanumana facing to the south. O master of gems,(or the lord of Ratana, the eldest son of Babbu Setha or the omni source of the treasure of Nandkrishore, the younger son of Babbuji) Otreasure of eternal bliss, O enemy of cupid, the god of love, o lord of Jhadakhanda ,may the morning be happy.(14)
||जय श्री झाडखण्डनाथ||
बटुस्वरूपेण परीक्ष्यपूर्व , सवाडर्धभागं प्रददावुमायै॥
लोकत्रये चित्रतनुस्तवैव, श्रीझाडखण्डेश्वर सुप्रभातम् ||15||
प्रथम ब्रहम्चारी रूप से परीक्षा लेकर पुनः आपने अपने अंग का आधा भाग पार्वती जी को दिया ।त्रिलोकी मे ऐसा विचित्र देह केवल आपका ही है। हे श्रीझाडखण्डनाथ ! यह प्रभात सुप्रमात् हो।
Before you bestowed upon Uma the half portion of your- self, you had examined her first in the form of a celibate. yours only is the veriegated body in the three worlds. O lord of Jhadakhanda may the morning be happy.(15)
||जय श्री झाडखण्डनाथ||
हरि: सहस्त्राब्जबलिप्रदाने ,स्वचक्षुरून्मूल्य ददौ भवद्भ्य:|
तस्मा अदाच्चक्रवपुः समोदं श्रीझाडखण्डेश्वर सुप्रभातम्||16||
एक बार श्री विष्णु ने हजार कमलों की बलि समर्पित करते हुए (एक कम हो जाने पर )अपनी आंख निकाल कर आपको भेंट कर दी । आपने भी उन्हें प्रसन्न होकर चक्ररूप में अपना शरीर दे दिया । श्री झाडखण्डनाथ !यह प्रभात सुप्रभात् रहे ।
Once while offering oblation of onethousand lotus flowers, having lost one flower ,god visnu pulled out one of his eyes,and thus replacing the missing flower offered the same to you, Pleasing with his that act, you granted him.gladly, your own body in the form of the celestial wheel. O lord of Jhadakhanda, may the morning be the glorious .(16)
||जय श्री झाडखण्डनाथ||
लिप्सू तवान्तं हरिवेधसौ तौ भृशं सलज्जौ विफलत्वमापतौ
ताभ्यां तनुं स्वां परिदर्शयान ! श्रीझाडखण्डेश्वर सुप्रभातम् ||17||
एक बार ब्रहमा तथा विष्णु आपका अन्त पाने के लिए चले सफलता न मिलने पर वे दोनो बडे लज्जित हुए तब उन दोनों को (प्रकट) अपना शरीर दिखलाने वाले हे श्रीझाडखण्डनाथ ! यह प्रभात सुप्रमात् हो।
Wishing to achieve your limit, both Visnu and brahma faild in their effort and felt themselves greatly ashamed. then before both of them you assumed your own form .O lord Jhadakhanda,may the morning be auspicious.(17)
||जय श्री झाडखण्डनाथ||
धरारथ: सूर्यविधू रथाढडौ ,यन्ताविधाता भुजगेन्द्रचाप:|
हरि: शरोडभूत् त्रिपुरप्रदाहे, श्रीझाडखण्डेश्वर सुप्रभातम ॥
त्रिपुर दहन के समय पृथ्वी-रथ, सूर्य तथा चन्द्र दानों पहिये, ब्रह्मा सारथि, वासुकि धनुष , तथा विष्णु बाण बने|हे श्री झाडखण्डनाथ ! यह प्रभात सुप्रभात् हो।
While you burnt the demon tripura, the earth was your chariot; the sun and the moon were its wheels; Brahma ,the creator was its controller;Vasuki the king of Serpents was your bow; and Visnu became your arrow. O lord Jhadakhanda ,let the morning be blissful.(18)
||जय श्री झाडखण्डनाथ||
पद्भ्यां धरित्री गगनंभुजाम्यां, जटाभरैद्यौश्चलतां भजन्ति ।
त्राणे त्रिलोक्या: नटराजरूप,श्रीझाडखण्डेश्वर सुप्रभातम ॥
दोनो पांवो से पृथ्वीए भुजाओं से आकाश तथा जटाओं के द्वारा द्युलोक चलायमान हो रहे है।इस भांति त्रिलोकि के सरक्ष्ण हेतु नटराज रूप श्रीझाडखण्डनाथ ! यह प्रभात सुप्रभात् हो|
By your feet, the earth ,by your hands the sky and with the mass of your braided hair the heaven are being shaken . In the form of Nataraja you are the cause of protection of three worlds. O lord of Jhadakhanra may the morning be graceful.(19)
||जय श्री झाडखण्डनाथ||
दिशि प्रतीच्यां जयपत्तनस्य, सेनानिवेशान्तरसंस्थितस्य ।
विभो:, परेशस्य सदाशिवस्य, श्रीझाडखण्डेश्वर सुप्रभातम् ||20||
जयपुर की पश्चिम दिशा में फौज की छावनी के बीच में स्थित सर्वव्यापक, परम प्रभू ,सदा कल्याण करने वाले श्री झाडखण्डनाथ का यह प्रभात सुप्रभात् बने।
To the west of the city of the jaipur and within the contoment are you are seated;O omnipresent;o great authority,O ever auspicious ,o Jhadakhandesvara ,the morning be happy.(20)
||जय श्री झाडखण्डनाथ||
भक्तेजने भा.रत भाविघातः ज्ञानप्रदातः सनकादिकेभ्य
तार ! त्रिनेत्र ! त्रिदशाधिनाथ ! श्रीझाडखण्डेश्वर सुप्रभातम्||21||
हे भक्तजन हेतु प्रतिभायुक्त सुन्दर कान्तिविधायक अथवा भारत का भविष्य बनाने वाले एंव भारत उपनामधारी कवि मे प्रतिभा लाने वाले हे सनकादिकों को ज्ञान देने वाले ! तारने वाले ! त्रिनयन ! देवो के स्वामी श्रीझाडखण्डनाथ ! यह प्रभात सुप्रभात् हो।
Ye ,who is always disposed to splendour of the devotees, or, who is the maker of better future prospects of Bharta, or, who is the bestower of virtue open the poet bearing surname as Bharata; and, who is the giver of knowledgs to Sankadi, the four mind-born sons of Brahma;O protector , O three eyed ,Olord of celestial beings ,O lord of Jhadakhanda let the morning be pleasent.(21)