शिव के  स्वरूप में मानव कल्याण की आभा :-

शिव का पंचानन रूप :-

१ भस्म यानि पृथ्वी

२ गंगा यानि जल

३ त्रिनेत्र यानि तेज तत्व

४ सर्प यानि वायु

५ डमरू यानि आकाश 

 

कैलाश पति 

शिवजी के अनेको नामो में से एक नाम कैलाश पति भी है और कैलाश पर्वत की चोटीयां ही उनका डेरा है पशु,पक्षी ,मानव ,कन्नर, आदि से प्यार करने वाले भाले नाथ ने अपना स्थान पृथ्वी पर ही बना कर आज के कलयुग में यह संदेश मानव को देने का प्रयास शायद  किया था, कि मानव कल्याण के लिए त्याग व सरलता की सर्वोपरी होता है।

जटाए 

जटाऐं मुख्य तीन को दर्षाती है ब्रहा्र ज्ञान, ध्यान, दिव्य ज्ञान । तीनों ही गुण मानव को भव सागर से मोक्ष प्राप्ति का मार्ग बताते है।

गंगा

गंगा को अपनी जटाओं में स्थान देकर उसके जल को पावन पवित्रता से परिपूर्ण करके भोले नाथ ने गंगा को धरती पर मनुष्यों की मुक्ति के लिए ही भेजा था । वर्तमान में भी गंगा जल पूरे विष्व में पवित्रता के लिए श्रध्दा स्वरूप पूजा जाता है आज तक संसार को पापों से मुक्ति के लिए गंगा जल शिव-शक्ति के आर्षिवाद के रूप में हमारी रक्षा किये हुए है तथा गंगा जल ही प्रतीक है पवित्रता पावनता , शुध्दता, निर्मलता का।

राख (भभूत-भस्म ) 

भस्म ही जीवन की सच्चाई है इसी लिए शायद भोलेनाथ का आवरण भस्म से लिपटा होता है और यह संसार के लिए भी सूचक है मानव को सत्यता से वाकिफ कराने के लिए की अंतिम यात्रा मानव की भस्म में ही विलिन होने की है फिर भी मानव अपनी गति को मोक्ष की राह पर नहीं डाल पाता शायद काल चक्र के माया जाल के कारण इसी लिए तो यह अतिआवष्यक है की अपने आप को भोले नाथ की शरण में डाल कर मुक्ति के लिए निष्चिन्त हो जाये।

सर्प 

भोलेनाथ ने सर्प को गले में धारण करके संसार के प्राणियों को शायद यह संदेश देने का प्रयास किया है की संगति सें भयानक विशधारी सर्प को भी भोले स्वभाव में परिवर्तित किया जा सकता है तो मानव अपने आपसी झगडों को भूल कर भाई-चारे का आचरण क्यों नहीं अपना सकता और यहीं कारण है शिव के गले में सर्प का लिपटा होना सूचक है सर्प विनाशकारी होने के साथ प्रेम का प्रतीक भी है।

त्रिषुल

शिव का त्रिषुल धारण करने के कारण शिव को त्रितापहारक भी कहते है जो सूचक है अर्धम के खिलाफ न्याय का।

डमरू 

प्रतीक है ध्यानाकर्षण का। डमरू को शिव रूप में आकाश की संज्ञा भी दी गई है पंचानन नाम में।

नांद

डमरू से निकलने वाली ध्वनी को नाद कहा जाता है।

तत्व और वरूद मुद्रा 

शिव के हाथों की उगलियां वरद मुद्रा में होती है। अंगूठे और तर्जनी को एक साथ जोड कर गोल आकार बनाया जाता है। ष्षेश तीन उंगलियां आत्मा, परमात्मा और भौतिकता की प्रतीक है।

रूदाक्ष 

शिव का एक नाम रूद्र भी है तथा नेत्रों को अक्ष भी कहा जाता है इसका अर्थ हुआ भगवान रूद्र के नेत्र । इसकी उत्पति भगवान शिव की आंखों से होने के कारण रूद्राक्ष कहलाता है आंखें। मान्यता है कि रूद्राक्ष शिव के आंखों से निकला है जो पावन पवित्र है। यह एक मुख से चौदह मुखों तक पाया जाता है।

कमंडल

यह कद्दू यानि कासिफल का होता है।

त्रयंबक

तीन नेत्रों का अर्थ है त्रिनेत्रधारी। शिवजी को तीन नेत्रो के कारण त्रयंबक भी कहते है।

अर्धचंद्र

चन्द्रमा प्रतीक है पावन शितलता का। शिवजी ने अर्धचन्द्र को मुकुट रूप में धारण किया हुआ है।

धतूरा 

शिव पूजा में धतुरे का महत्व माना जाता है।

मृग छाल 

मृग छाल का स्वभाव चंचलता, चपलता का पर्याय है इसका उद्देष्य इन्द्रियों पर काबू रखना है।

बैल 

उनका वाहन है जिसे नन्दी के नाम से जाना जाता है।

बिल्व पत्र 

 शिवजी की पूजा मे सबसे पवित्र बिल्व के पत्तो को माना गया है व बिल्व के पत्तों से ही पूजा का महत्व बताया गया है।

श्मशान 

जिनका धूनि रमाने का स्थान है तथा गण उनके दरबारी (साथी है)।

स्वभाव 

भोले है व शमादान का इस लिए भोले बाबा है।

नीलकंण्ठ 

विश को कण्ठ में धारण करने से नीलकण्ठ होने के साथ नीलकण्ठ भी कहलाता है।

लिगं रूप

पौराणिक मान्यता के अनुसार एक बार ब्रहा्राजी व विष्णुजी में अंहकार वश एक दूसरे से श्रेष्ठ होने के लिए होड प्रारम्भ हो गयी , इस दौरान एक अद्भुद आभा से परिपूर्ण लिगं रूप में ज्वाला (ज्योति) प्रकट हुई दोनों के अथक प्रयास के बाद भी उस लिंग का अन्त का पता नही चल सका थक हार कर जब लिगं के रहस्य का पता शिव रूप में हुआ तो दोनों ने हार कर शिव को सर्वोपरि मानकर अपनी भूल को स्वीकार किया, उसी समय से कहा जाता है शिव की पूजा लिगं रूप में प्रारम्भ हुई।

हमने देखा प्रभू शिव ने मानव मोक्ष के लिए अपने आप को पूर्णतः मानव के बीच ही स्थापित किया हुआ है । यदि मानव चाहे तो हर क्षण, हर पल भोले नाथ का संदेश ध्यान में रखते हुए आपने कामो को मोक्ष की राह के अनुसार ही पर्णित कर सकता है। वैसे तो शिव-शक्ति के रूपों व महानता के अनेकों व्याख्यान हमें पढने व देखने को मिल जाते है।

जगत के पालन हार भोले नाथ के मनमोहक रूप व उनकी आभा का वर्णन करने के पश्चात शिव के मन की बात का एक प्रसंग का वर्णन हम यहां जरूर करना चाहेगें, जो महाभागवत के आधार पर है।